इक ख़्वाब की ताबीर हक़ीक़त ही न हो By ख़्वाब, Rubaai << आँख अब्र-ए-बहारी से लड़ी ... ऐ मअनी-ए-काइनात मुझ में आ... >> इक ख़्वाब की ताबीर हक़ीक़त ही न हो अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल में मोहब्बत ही न हो ख़्वाबों से हक़ीक़त को समझने वालो मुमकिन है तख़य्युल में सदाक़त ही न हो Share on: