गर यार से हर रोज़ मुलाक़ात नहीं By Rubaai << बन-बासियों में जलव-ए-गुलश... दरयाफ़्त करे वज़्न हवा का... >> गर यार से हर रोज़ मुलाक़ात नहीं और हो भी गई तो फिर मुदारात नहीं दिल दे चुके अब क़द्र हो या बे-क़दरी जो कुछ हो सो हो बस की तो कुछ बात नहीं Share on: