गो कुछ भी वो मुँह से नहीं फ़रमाते हैं Admin माता पिता की शायरी, Rubaai << गो उस की नहीं लुत्फ़-ओ-इन... गर कहे हुलूल है वो इक अमर... >> गो कुछ भी वो मुँह सी नहीं फ़रमाते हैं शीरीं सुख़नी का हम मज़ा पाते हैं अल्फ़ाज़ कुछ उन के मुँह में गिरानी हैं लब खुल नहीं सकते बंद हो जाते हैं Share on: