गुल हैं कि रुख़-ए-गर्म के हैं अंगारे By Rubaai << ख़ामोशी पे इल्ज़ाम लगाया ... कूचे में तुम्हारे हम जो ट... >> गुल हैं कि रुख़-ए-गर्म के हैं अंगारे बालक के नैन से टूटते हैं तारे रहमत का फ़रिश्ता बन के देती है सज़ा माँ ही को पुकारे और माँ ही मारे Share on: