हर आग को नज़्र-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक करूँ By Rubaai << क्या रंग-ए-ज़मीन-ओ-आसमाँ ... है जिस की सरिश्त में सफ़ा... >> हर आग को नज़्र-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक करूँ हर सैल को बर्बाद सर-ए-ख़ाक करूँ ऐ शीशा-ए-आहंग मैं मअनी की शराब कह दे तुझे किस दर्जा मैं बे-बाक करूँ Share on: