हर लहज़ा धड़कता है दिल-ए-ख़ाना-ख़राब By Rubaai << अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए... बन-बासियों में जलव-ए-गुलश... >> हर लहज़ा धड़कता है दिल-ए-ख़ाना-ख़राब हर लम्हा बजाता है बग़ावत का रुबाब जीने की मिरी उम्र है जीने दो मुझे इस दौर में जीना भी तो है कार-ए-सवाब Share on: