अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है By बेसबाती, मौत, Rubaai << रिफॉर्म की हद हर लहज़ा धड़कता है दिल-ए-... >> अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है ले ज़ाद-ए-सफ़र कूच की तय्यारी है मर मर के पहुँचते हैं मुसाफ़िर वाँ तक ये क़ब्र की मंज़िल भी ग़ज़ब की भारी है Share on: