हो जाती है सहल पेश-ए-दाना मुश्किल By Rubaai << क़तरे अरक़-ए-जिस्म के मोत... क़ामत है कि अंगड़ाइयाँ ले... >> हो जाती है सहल पेश-ए-दाना मुश्किल दिल ने न किसी अम्र को जाना मुश्किल मदह शह-ए-दीं में है मगर दिल का ये क़ौल है बहर का कूज़े में समाना मुश्किल Share on: