क़ामत है कि अंगड़ाइयाँ लेती सरगम By Rubaai << हो जाती है सहल पेश-ए-दाना... हर-चंद कि ख़स्ता ओ हज़ीं ... >> क़ामत है कि अंगड़ाइयाँ लेती सरगम हो रक़्स में जैसे रंग-ओ-बू का आलम जगमग जगमग है शब्नमिस्तान-ए-इरम या क़ौस-ए-क़ुज़ह लचक रही है पैहम Share on: