हों क्यूँ न बुतों की हम को दिल से चाहें By Rubaai << धीमा धीमा सा नूर जैसे तह-... लम्हों का निशाना कभी होता... >> हों क्यूँ न बुतों की हम को दिल से चाहें हैं नाज़-ओ-अदा में उन को क्या क्या राहें दिल लेने को सीने से लिपट कर क्या किया डाले हैं गले में पतली पतली बाहें Share on: