इख़्फ़ा के लिए है इस क़दर जोश-ओ-ख़रोश Admin बन्ना शायरी, Rubaai << इंकार न इक़रार न तस्दीक़ ... ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ... >> इख़्फ़ा के लिए है इस क़दर जोश-ओ-ख़रोश याँ होश का मुक़तज़ा है बनना मदहोश हुस्न-ए-अज़ली तो है अज़ल से ज़ाहिर या'नी है तजल्लियों में अपनी रू-पोश Share on: