इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर By Rubaai << इस दहर में इक नफ़्स का धो... हर रंग में इबलीस सज़ा देत... >> इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर काकुल में बदल जाएगी कुल ये ज़ंजीर इस आदम-ए-फ़र्सूदा के ज़ेर-ए-तख़रीब इक आदम-ए-नौ की हो रही है तामीर Share on: