इस बहर में सैकड़ों ही लंगर टूटे Admin बाबा साहब की शायरी, Rubaai << काफ़ूर है दिल-जलों को तनव... इस बाग़ में किस को फूल चु... >> इस बहर में सैकड़ों ही लंगर टूटे बन बन के हबाब कासा-ए-सर टूटे गिर्दाब-ए-फ़ना से कोई बच कर निकला शल हो के यहाँ दस्त-ए-शनावर टूटे Share on: