इस जिस्म की केचुली में इक नाग भी है Admin नाग पंचमी की शायरी, Rubaai << जो मा'नी-ए-मज़मूँ है ... हर ज़र्रे पे फ़ज़्ल-ए-किब... >> इस जिस्म की केचुली में इक नाग भी है आवाज़-ए-शिकस्त-ए-दिल में इक राग भी है बेकार नहीं बना है इक तिनका भी ख़ामोश दिया सिलाई में आग भी है Share on: