इश्क़ By Rubaai << कर लुत्फ़-ओ-मुदारा से दिल... जब तजरबा की धूप में एहसास... >> ऐ इश्क़ क्या तू ने घरानों को तबाह पीरों को ख़रिफ़ और जवानों को तबाह देखा है सदा सलामती में तेरी क़ौमों को ज़लील ख़ानदानों को तबाह Share on: