ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा By Rubaai << मौजूदा तरक़्क़ी का अंजाम आँख अब्र-ए-बहारी से लड़ी ... >> ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा तड़प जा पेच खा-खा कर बदल जा नहीं साहिल तिरी क़िस्मत में ऐ मौज! उभर कर जिस तरफ़ चाहे निकल जा! Share on: