आँख अब्र-ए-बहारी से लड़ी रहती है By Rubaai << ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभ... इक ख़्वाब की ताबीर हक़ीक़... >> आँख अबर-ए-बहारी से लड़ी रहती है अश्कों की रिदा मुँह पे पड़ी रहती है दोनों आँखें हैं मेरी सावन भादों याँ सारे बरस एक झड़ी रहती है Share on: