जो मुज़य्यन हों तिरे हुस्न की ताबानी से Admin Qita << अफ़्सोस तिरी वज़्अ पे आता... दयार-ए-इश्क़ में महरूमियो... >> जो मुज़य्यन हूँ तिरे हुस्न की ताबानी से ढूँढती रहती हैं ऐसे ही मनाज़िर आँखें उस का दिल दीदा-ए-बीना की तरह होता है बंद रखता है जो हर वक़्त ब-ज़ाहिर आँखें Share on: