काठ की हंडिया चढ़ी कब बार बार Admin झूठे वादे शायरी, Rubaai << ख़ाक नमनाक और ताबिंदा नुज... करता हूँ सदा मैं अपनी शान... >> काठ की हंडिया चढ़ी कब बार बार खो दिया झूटे ने अपना ए'तिबार बात झूटी जो ज़बाँ पर लाएगा सच भी इस का झूट समझा जाएगा Share on: