करता हूँ सदा मैं अपनी शानें तब्दील Admin बातें शायरी, Rubaai << काठ की हंडिया चढ़ी कब बार... कैफ़ियत-ओ-ज़ौक़ और ज़िक्र... >> करता हूँ सदा में अपनी शानें तब्दील तूफ़ान में था नूह तो आतिश में ख़लील फ़िलहाल हूँ ज़ाहिर में अगर इस्माईल हूँ आलम-ए-बातिन में वही रब्ब-ए-जलील Share on: