ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं By Rubaai << उड़ता हुआ बादल कहीं हाथ आ... जुरअत हो तो दुनिया से बग़... >> ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं इस दौर के हालात से हम गुज़रे हैं सैलाब का मरकज़ था जब अपना आँगन उस रात की बरसात से हम गुज़रे हैं Share on: