लाज़िम है कि फ़िक्र-ए-रुख़-ए-दिलबर छोड़ूँ Admin छोड़ू शायरी, Rubaai << लो जाइए बस ख़ुदा हमारा हा... क्या ज़िक्र-ए-वफ़ा जफ़ा क... >> लाज़िम है कि फ़िक्र-ए-रुख़-ए-दिलबर छोड़ूँ वाजिब है यही अब कि मुक़र्रर छोड़ूँ नासेह ने किया मुझ को भी आख़िर मजनूँ हूँ क़ैद में जिस की उसे क्यूँ कर छोड़ूँ Share on: