माहौल से ज़ुल्मत की रिदा हटती है By Rubaai << कूचे में तुम्हारे हम जो ट... मैं मुंकिर-ए-अस्लाफ़ नहीं... >> माहौल से ज़ुल्मत की रिदा हटती है इक धुँद सी ता-हद्द-ए-नज़र छटती है लहरा के भरे जिस्म को वो जान-ए-बहार हँसती है तो आकाश पे पौ फटती है Share on: