मज़मून अगर राह में हाथ आता है Admin मुनीर नियाज़ी शायरी, Rubaai << फोड़े ने सफ़र में सख़्त घ... कलकत्ता को डाक में चला हू... >> मज़मून अगर राह में हाथ आता है ख़ामा चलने में ठोकरें खाता है हाल-ए-ख़त-ए-तक़्दीर खुला आज 'मुनीर' अपना लिखा पढ़ा नहीं जाता है Share on: