मर मर के लहद में मैं ने जा पाई है Admin कशिश शायरी, Rubaai << सरमाया-ए-इल्म-ओ-फ़ज़्ल खोय... कम-ज़र्फ़ अगर दौलत-ओ-ज़र ... >> मर मर के लहद में मैं ने जा पाई है याँ तक मुझे तेरी ही कशिश लाई है आ ऐ मिरे मुँह छुपाने वाले आ जा ख़ल्वत है शब-ए-तार है तन्हाई है Share on: