मर्ग़ूब हो गर तुम को उमूमी शाबाश By Rubaai << रेशा रेशा बिखर गया मैं न ... ऐ मोमिनो फ़ातिमा का प्यार... >> मर्ग़ूब हो गर तुम को उमूमी शाबाश हर तरह करो दौलत-ए-दुनिया की तलाश हैं क़ौम में मुद्दई विलायत के बहुत अफ़्सोस नहीं विलायती अक़्ल-ए-मआश Share on: