मोमिन ये असर सियाह-मस्ती का न हो By Rubaai << फैली है अजब आग तुझे इस से... दिल ही की तरह मुँह भी है ... >> मोमिन ये असर सियाह-मस्ती का न हो अंदेशा कभी बुलंद ओ पस्ती का न हो तौहीद-ए-वजूदी में जो है कैफ़िय्यत डरता हूँ कि हीला ख़ुद-परस्ती का न हो Share on: