मुँह गेसू-ए-पुर-ख़म से न मोड़ूँ कब तक Admin छोड़ू शायरी, Rubaai << नाहक़ था 'क़लक़' ... मेहराब-ओ-मुसल्ला और ज़ाहि... >> मुँह गेसू-ए-पुर-ख़म से न मोड़ूँ कब तक इस सिलसिला-ए-पा को न तोड़ूँ कब तक तू मुझ से अदू तुझ से ग़रज़ सब ही छुटे आख़िर तिरी उम्मीद न छोड़ूँ कब तक Share on: