नाहक़ था 'क़लक़' मुझे ग़ुरूर-ए-इस्लाम Admin इस्लामी शायरी हिंदी में, Rubaai << सद-हैफ़ कि मय-नोश हुए हम ... मुँह गेसू-ए-पुर-ख़म से न ... >> नाहक़ था 'क़लक़' मुझे ग़ुरूर-ए-इस्लाम मरदूद हुआ करती है नज़र-ए-असनाम मेहराब है मस्जिद में मिरा अफ़्साना तौबा है हुआ हूँ मैं भी क्या ही बदनाम Share on: