न मय के न जाम के लिए मरते हैं By Rubaai << ज़ाहिर भी तू है और निहाँ ... दिल तुझ पे मिरा जो मुब्तल... >> न मय के न जाम के लिए मरते हैं न दहर में नाम के लिए मरते हैं शायद कभी ब'अद-ए-मर्ग पूछे वो हमें बस हम इसी काम के लिए मरते हैं Share on: