ज़ाहिर भी तू है और निहाँ भी तू है By Rubaai << नादीदा ख़लाओं से गुज़र आई... न मय के न जाम के लिए मरते... >> ज़ाहिर भी तू है और निहाँ भी तू है मअनी भी तू है और बयाँ भी तू है दोनों आलम में तुझ से सिवा कोई नहीं याँ भी तू है और वहाँ भी तू है Share on: