प्रेमी को बुख़ार उठ नहीं सकती है पलक By Rubaai << हर-चंद कि ख़स्ता ओ हज़ीं ... हर ग़ुंचे से शाख़-ए-गुल ह... >> प्रेमी को बुख़ार उठ नहीं सकती है पलक बैठी है सिरहाने माँद मुखड़े की दमक जलती हुई पेशानी पे रख देती है हाथ पड़ जाती है बीमार के दिल में ठंडक Share on: