रुख़्सत अभी ज़ुल्मतों का डेरा कर दूँ Admin सवेरा शायरी, Rubaai << साहिल पे अगर मिरा सफ़ीना ... मालूम कि इंसान किसे कहते ... >> रुख़्सत अभी ज़ुल्मतों का डेरा कर दूँ नापैद जहाँ से अंधेरा कर दूँ सूरज के निकलने में तो है देर अभी पैमाना उठा दो तो सवेरा कर दूँ Share on: