सदियों मैं हवस-ख़ाना-ए-हस्ती में रहा By Rubaai << ऐ रूप की लक्ष्मी ये जल्वो... ऐ दिल जो ये आँख आज लड़ाई ... >> सदियों मैं हवस-ख़ाना-ए-हस्ती में रहा सोने में तुला चाँदी के दरिया में बहा लेकिन न ज़र-ओ-माल हुए दामन-गीर क्या सब्र ने तौक़ीर बढ़ाई आहा Share on: