सर-ता-ब-क़दम रुख़-ए-निगारीं है कि तन By Rubaai << जो मर्तबा अहमद के वसी का ... जो चश्म ग़म-ए-शह में सदा ... >> सर-ता-ब-क़दम रुख़-ए-निगारीं है कि तन हैं उज़्व-ए-हसीं कि बोल उठने को दहन ये मस्ती-ओ-कैफ़ ये जमाही ये झपक इक अध-खुली नर्गिस-ए-ख़ुमारीं है बदन Share on: