जो चश्म ग़म-ए-शह में सदा रोती है By Rubaai << सर-ता-ब-क़दम रुख़-ए-निगार... सानी नहीं तेरा न कोई तेरी... >> जो चश्म ग़म-ए-शह में सदा रोती है हर लम्हा फ़ुज़ूँ उस में ज़िया होती है अश्क-ए-ग़म-ए-शब्बीर का रुत्बा देखो याँ अश्क का क़तरा है वहाँ मोती है Share on: