सुकूत-ए-दरवेश-ए-जाहिल By Rubaai << कोताह न उम्र-ए-मय-परस्ती ... अब ज़ेर-ए-क़दम लहद का बाब... >> मसरूफ़ जो यूँ वज़ीफ़ा-ख़्वानी में हैं आप ख़ैर अपनी समझते बे-ज़बानी में हैं आप बोलें कुछ मुँह से या न बोलें हज़रत मालूम है हम को जितने पानी में हैं आप Share on: