सूरत वो पहली कि हो मगर माह-ए-तमाम Admin दर्द वाली शायरी, Rubaai << वो चश्मा दिला कहाँ से पैद... सज्जादा है मेरा फ़लक-ए-नी... >> सूरत वो भली कि हो मगर माह-ए-तमाम सीरत वो बुरी कि हो मगर वाली-ए-शाम अच्छा होना बुरा नहीं है ज़िन्हार क्यूँ ख़ू की बुरी न हो की हुए हो बदनाम Share on: