ठोकर भी न मारेंगे अगर ख़ुद-सर है By Rubaai << उल्फ़त हो जिसे उसे वली कह... थे ज़ीस्त से अपनी हाथ धोए... >> ठोकर भी न मारेंगे अगर ख़ुद-सर है ज़रदार को भी फ़रोतनी बेहतर है है मेवा-ए-नख़्ल क़द-ए-इंसाँ तस्लीम झुकती है वही शाख़ जो बार-आवर है Share on: