तुम तेशा-ए-बाग़बाँ से क्यूँ मुज़्तर हो Admin नात शायरी, Rubaai << बढ़ता हुआ हौसला न टूटे दि... सरमाया-ए-ए'तिबार दे द... >> तुम तेशा-ए-बाग़बाँ से क्यूँ मुज़्तर हो शायद ये क़लम ही नख़्ल बार-आवर हो मिक़राज़-ए-अजल है क़ाता-ए-शाख़-ए-नबात मुमकिन है इसी में राज़-ए-जाँ मुज़्मर हो Share on: