तुम तो ऐ मेहरबान अनूठे निकले By Rubaai << दिल ही की तरह मुँह भी है ... मुख़ालिफ़त का जवाब ख़ामोश... >> तुम तो ऐ मेहरबान अनूठे निकले जब आन के पास बैठे रूठे निकले क्या कहिए वफ़ा एक भी वअ'दा न किया ये सच है कि तुम बहुत झूटे निकले Share on: