ये संग-ए-निशाँ है मंज़िल-ए-वहदत का Admin Rubaai << आशिक़ का ख़याल है बहुत ने... सरमाया-ए-इल्म-ओ-फ़ज़्ल खोय... >> ये संग-ए-निशाँ है मंज़िल-ए-वहदत का पैदा हुआ फिर कोई न उस सूरत का इंसान जिसे कहते हैं दुनिया वाले क़द्द-ए-आदम है आईना क़ुदरत का Share on: