आबाद मय-कदे भी हैं दैर-ओ-हरम भी नहीं By Sher << एक हँसती हुई बदली देखी क़ुदरत की बरकतें हैं ख़ज़... >> आबाद मय-कदे भी हैं दैर-ओ-हरम भी नहीं लेकिन न आदमी को मिला कोई आदमी Share on: