आग़ोश की हसरत को बस दिल ही में मारुँगा By Sher << आईना ख़ुद भी सँवरता था हम... एक बोसे से मुराद-ए-दिल-ए-... >> आग़ोश की हसरत को बस दिल ही में मारुँगा अब हाथ तिरी ख़ातिर फैलाऊँ तो कुछ कहना Share on: