आह! कल तक वो नवाज़िश! आज इतनी बे-रुख़ी By Sher << सफ़र में ऐसे कई मरहले भी ... कब से बंजर थी नज़र ख़्वाब... >> आह! कल तक वो नवाज़िश! आज इतनी बे-रुख़ी कुछ तो निस्बत चाहिए अंजाम को आग़ाज़ से Share on: