कब से बंजर थी नज़र ख़्वाब तो आया By Sher << आह! कल तक वो नवाज़िश! आज ... आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है >> कब से बंजर थी नज़र ख़्वाब तो आया शुक्र है दश्त में सैलाब तो आया Share on: