आज भी ज़ख़्म ही खिलते हैं सर-ए-शाख़-ए-निहाल By Sher << हर आँख इक सवाल तही-दस्त क... क़दम क़दम पे हवादिस ने रह... >> आज भी ज़ख़्म ही खिलते हैं सर-ए-शाख़-ए-निहाल नख़्ल-ए-ख़्वाहिश पे वही बे-समरी रहना थी Share on: