हर आँख इक सवाल तही-दस्त के लिए By Sher << हक़ीक़तों से मफ़र चाही थी... आज भी ज़ख़्म ही खिलते हैं... >> हर आँख इक सवाल तही-दस्त के लिए कब तक मरूँगा मेरे ख़ुदा बार बार मैं Share on: