आज शहरों में हैं जितने ख़तरे By Sher << अब मिरे ब'अद कोई सर भ... आज भी शाम-ए-ग़म! उदास न ह... >> आज शहरों में हैं जितने ख़तरे जंगलों में भी कहाँ थे पहले Share on: