आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो By Sher << शैख़ करता तो है मस्जिद मे... अपनों से भी इतना तकल्लुफ़ >> आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है Share on: